क्लोरीनीकरण से गंगा जल में बैक्टीरियोफेज निष्क्रिय हो सकते हैं : डॉ अजय सोनकर

प्रयागराज । प्रसिद्ध वैज्ञानिक पद्मश्री डॉ अजय कुमार सोनकर ने कहा कि गंगा जल पर अपने अध्ययन के दौरान उन्होंने गंगा नदी के आसपास के सीवेज उपचार संयंत्रों में क्लोरीन का उपयोग होते देखा है। उनके अनुसार क्लोरीन कीटाणुनाशकों से उत्पन्न ऑक्सीडेटिव तनाव बैक्टीरियोफेज को निष्क्रिय कर सकता है, जिससे जीवाणु नष्ट हो सकते हैं और बैक्टीरियोफेज के लिए उनसे जुड़ना और संक्रमित करना कठिन हो सकता है।
क्लोरीन खाद्य और जल उद्योगों में इस्तेमाल होने वाला एक आम सैनिटाइजर है। यह न्यूक्लिक एसिड और लिपिड सहित जैव अणुओं के साथ प्रतिक्रिया करता है, जो कोशिकाओं को नुकसान पहुंचा सकते हैं। साथ ही साथ क्लोरीन बैक्टीरियोफेज की सतह पर हाइड्रोफोबिक डोमेन की अभिव्यक्ति को भी बढ़ाता है जिससे फेज की जुड़ने और संक्रमित करने की क्षमता कम हो जाती है। वैज्ञानिक डॉ अजय ने कहा कि क्लोरीनीकरण की यह प्रक्रिया गंगा जल की स्वयं को शुद्ध करने की दिव्य क्षमता को नुकसान पहुंचा सकती है।
क्लोरीन हमारे स्वास्थ्य के लिये भी हानिकारक होता है। क्लोरीन गैस हमारे शरीर में पानी के साथ प्रतिक्रिया करके कठोर अम्ल बनाती है जो कोशिकाओं को नुकसान पहुंचाती है। क्लोरीन विषाक्तता हमारे शरीर के कई अलग-अलग हिस्सों को प्रभावित कर सकती है, जिसमें आंखें, नाक, गला, फेफड़े और पाचन तंत्र शामिल हैं।
उन्होंने कहा, वैकल्पिक रूप से बैक्टीरियोफेज का उपयोग क्लोरीनीकरण के विकल्प के रूप में सूक्ष्मजीवों या पानी में जैव नियंत्रण के लिए किया जा सकता है, उसके बाद किसी भी अवशिष्ट बैक्टीरियोफेज को खत्म करने के लिए यूवी उपचार का उपयोग किया जा सकता है।
वैज्ञानिक ने कहा कि बैक्टीरियोफेज का प्रयोगशालाओं में अच्छी तरह से उत्पादन किया जा सकता है। बैक्टीरियोफेज वायरस हैं जो बैक्टीरिया को संक्रमित करते हैं और उन्हें तरल माध्यम या ठोस अगार में उत्पन्न किया जा सकता है।

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