सीता स्वयंवर में शिव धनुष क्यों नहीं उठा पाया था रावण, जानिए क्या था इसका कारण

देवर्षि नारद ने सबसे पहले रामायण वाल्मीकि जी को सुनाई थी। धार्मिक मान्यता है कि रामायण सुनने के बाद वाल्मीकि जी का हृदय परिवर्तन हुआ, जिसके बाद उन्होंने धार्मिक ग्रंथ रामायण की रचना की थी। बता दें कि रामायण में सात कांड हैं, जिनका विशेष महत्व है। वहीं बालकांड में सीता स्वयंवर का उल्लेख किया गया है। रामायण के मुताबिक मां सीता के लिए वर का चयन करने के लिए राजा जनक ने स्वयंवर का आयोजन किया था। इस स्वयंवर में एक शर्त रखी गई थी कि जो भी व्यक्ति शिव धनुष को उठाकर तोड़ेगा, मां सीता का उसी के साथ विवाह तय कर दिया जाएगा।

 

वहीं कई शक्तिशाली राजकुमारों ने सीता स्वयंवर में हिस्सा लिया था। जिसमें दशानन रावण भी शामिल हुआ था। लेकिन रावण शिव धनुष को नहीं उठा पाया था। ऐसे में सवाल यह उठता है कि इतना शक्तिशाली होने के बाद भी रावण शिव धनुष को क्यों नहीं उठा सका था। ऐसे में आज इस आर्टिकल के जरिए हम आपको बताने जा रहे हैं इससे जुड़ी एक कथा के बारे में…

भगवान शिव का परम भक्त था रावण

रामायण के मुताबिक रावण भगवान शिव का परम भक्त था। शिव भक्त रावण ने एक बार कैलाश पर्वत भी उठा लिया था। लेकिन सीता स्वयंवर में रावण को हार का सामना करना पड़ा था। दरअसल, जब रावण को शिव धनुष उठाने के लिए बुलाया गया था, तो वह धनुष नहीं उठा सका। क्योंकि उसमें इतना बल नहीं था कि वह धनुष उठा सके। रामायण के अनुसार, भगवान शिव के धनुष को उठाने के लिए प्रेम और उदारता का होना जरूरी था, जोकि रावण में नहीं था। इस कारण से रावण शिव धनुष नहीं उठा सका। वहीं भगवान श्रीराम ने शिव धनुष को प्रणाम कर तोड़ दिया। क्योंकि रावण को अपनी शक्ति का बेहद घमंड था, इसलिए दशानन भगवान शिव के धनुष को नहीं उठा सका।

 

शिव धनुष की खास बातें

त्रिपुरासुर राक्षस का अंत करने के लिए महादेव ने धनुष बनाया था। शिव धनुष को पिनाक नाम से जाना जाता है। इसी धनुष से त्रिपुरासुर का वध किया गया था। यह धनुष बेहद शक्तिशाली था। भगवान शिव ने इस एक तीर से त्रिपुरासुर की तीन नगरी ध्वस्त कर दी थी। जिसके बाद भगवान शिव ने धनुष को देवताओं को सौंप दिया था।

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