हर तीन साल में शिक्षकों की नई ट्रेनिंग-परीक्षा होनी चाहिए; राज्यसभा में सुधा मूर्ति ने दिया सुझाव

संसद में शिक्षा मंत्रालय के कार्यों पर चर्चा के दौरान सुधा मूर्ति ने कहा कि शिक्षकों की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण होती है। अगर शिक्षक अच्छे नहीं होंगे तो शिक्षा व्यवस्था में सुधार नहीं हो सकता। उन्होंने कहा कि एक बार जब शिक्षक बीए, एमए या पीएचडी कर लेते हैं और पढ़ाने लगते हैं, तो सेवानिवृत्ति तक उनकी कोई परीक्षा नहीं होती। यह स्थिति सही नहीं है। उन्होंने सुझाव दिया कि शिक्षकों के लिए हर तीन साल में एक नई ट्रेनिंग और परीक्षा होनी चाहिए, खासकर प्राथमिक स्तर पर पढ़ाने वाले शिक्षकों के लिए।सुधा मूर्ति ने कहा कि सिर्फ अच्छे स्कूल भवन बनाने से शिक्षा की गुणवत्ता नहीं सुधरेगी, जब तक शिक्षक अच्छे न हों। उन्होंने बताया कि शिक्षकों को सिर्फ अपनी डिग्री से नहीं, बल्कि अपनी पढ़ाने की पद्धति, समझाने के तरीके और व्यवहार से भी शिक्षा प्रणाली को मजबूत बनाना होता है।

उन्होंने कहा कि कई ट्रेनिंग सेशंस होते हैं, लेकिन उनमें परीक्षा नहीं होती। इसलिए “हर तीन साल में शिक्षकों के लिए एक परीक्षा होनी चाहिए, जिसमें नई शिक्षण तकनीकों को शामिल किया जाए।”

मूर्ति ने कहा, “जीवन में मां के प्यार को छोड़कर कुछ भी मुफ्त नहीं मिलता। अगर कोई शिक्षक अच्छा बनना चाहता है, तो उसे कड़ी ट्रेनिंग और परीक्षा से गुजरना होगा।”

एनसीपी-एससीपी सांसद फौजिया खान ने भी सुधा मूर्ति के इस सुझाव का समर्थन किया और कहा कि सरकार की कथनी और करनी में बहुत अंतर है।

शिक्षा बजट में कटौती का मुद्दा

फौजिया खान ने बताया कि नई शिक्षा नीति (NEP) के तहत जीडीपी का 6% शिक्षा पर खर्च करने की बात कही गई थी, लेकिन सरकार लगातार शिक्षा बजट को घटा रही है। 2015-16 में यह 3.8% था, जो 2025-26 तक 2.5% रह गया है।

उन्होंने यह भी कहा कि सरकार ने तीन लाख से ज्यादा स्कूलों की स्थिति पर कोई ध्यान नहीं दिया है और प्रारंभिक शिक्षा के लिए कोई स्पष्ट बजट नहीं दिया गया है। बीएसपी सांसद रामजी ने ऑनलाइन शिक्षा को नियंत्रित करने की मांग की, क्योंकि बच्चे कई बार अनुचित कंटेंट का सामना कर रहे हैं।

भाषा विवाद और शिक्षा नीति

सीपीआई सांसद संतोष कुमार पी ने कहा कि “हिंदी को राष्ट्रीय शिक्षा नीति के माध्यम से जबरदस्ती लागू नहीं किया जाना चाहिए।” उन्होंने बताया कि संविधान में “क्षेत्रीय भाषा” शब्द का कोई उल्लेख नहीं है, बल्कि सभी भाषाएं राष्ट्रीय भाषाएं हैं।

जेडीयू सांसद संजय कुमार झा ने कहा कि “भारत में भाषा कभी भी विभाजन का मुद्दा नहीं रही।”

सीपीआई (एम) के सांसद जॉन ब्रिटास ने कहा कि आपातकाल के दौरान संविधान में एक संशोधन किया गया था, जिससे शिक्षा को राज्य सूची से हटा दिया गया। उन्होंने मांग की कि इसे वापस लेकर शिक्षा का अधिकार राज्यों को दिया जाए।

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